简体中文
繁體中文
English
Pусский
日本語
ภาษาไทย
Tiếng Việt
Bahasa Indonesia
Español
हिन्दी
Filippiiniläinen
Français
Deutsch
Português
Türkçe
한국어
العربية
एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटAFPहम मर्द मानें या न मानें, #MeToo मुहिम ने तमाम औरतों को हौसला और आवाज़ दी है. शायद तभ
इमेज कॉपीरइटAF
हम मर्द मानें या न मानें, #MeToo मुहिम ने तमाम औरतों को हौसला और आवाज़ दी है. शायद तभी वे शर्म और कलंक के डर से जीतकर ख़ामोशी तोड़ने में कामयाब हो पाईं. सालों से दफ़्न अपनी तकलीफ़ को सबके सामने सिर उठाकर खुलकर ज़ाहिर कर पाईं.
इस तक़लीफ़ को हम आज यौन हिंसा या यौन उत्पीड़न के नाम से जानते हैं. मौजूदा वक़्त में इस हिंसा और उत्पीड़न से लड़ने और बचने के लिए कई अलग-अलग क़ानून हैं.
इनमें से ज़्यादातर जब किसी न किसी रूप में हिंसा झेल रही थीं, तब ऐसा कुछ नहीं था. इस तक़लीफ़ के लिए न शब्द थे और न क़ानून. यह बहनापा भी नहीं था. ज़्यादातर महिलाएँ इसे चुपचाप झेलती थीं. 'मीटू' के तहत आवाज़ उठाने वाली लड़कियां क़ाबिलदिमाग़ और हुनरमंद हैं.
इमेज कॉपीरइटGetty Image
बहुत सारी बाधाएं पार कर वो मर्दों से घिरी काम की दुनिया में अपनी क़ाबिलियत की वजह से ही पहुंची. ज़ाहिर है, इनमें से कई लड़कियाँ अपने ख़ानदान, इलाके और गाँव-कस्बे की पहली स्त्री थीं या हैं, जिन्होंने बाहरी दुनिया में काम करने के लिए कदम बढ़ाया.
इसलिए इनके सामने ढेर सारी चुनौतियां भी थीं/हैं. हर तरह की 'इज्ज़त' बचाने का भार था/है. हालात बदले, माहौल बदला, 'इज्ज़त का तमगा' जब बोझ बन गया तो दफ़्न तक़लीफ़ों को ज़ुबान मिल गयी. नतीजा, एक के बाद एक आवाज़ निकलती चली गयी. साथ से साथ मिलता गया. बोलने का हौसला बनता गया. यही बहनापा है.
तक़लीफ़ों की लम्बी फेहरिस्त
हालांकि आज शब्द हैं, क़ानून हैं, बहनापा है फिर भी स्त्रियों की तक़लीफ़ों यह सिलसिला रुका नहीं है. ऐसा भी नहीं है कि ये तक़लीफ़देह हालात शहरों के बड़े दफ़्तरों, कॉलेजों या विश्वविद्यालयों तक ही सीमित है.
गांव-कस्बों और खेतों में जहां भी मेहनतकश महिलाएँ हैं, वहाँ ये दिख सकता है.
आवाज़ उठाने वालियों की दास्तानें बता रही हैं कि तक़लीफ़ों की फेहरिस्त कितनी लम्बी है और कितने तरह की है. इस फेहरिस्त में तक़लीफ़ देने वाले अल्फाज़ हैं, तस्वीरें हैं, बात है, बर्ताव है, रवैया है, सुलूक है, मज़ाक है, जोर-ज़बरदस्ती है, ताक़त का इस्तेमाल है, धमकी है, सज़ा है, दिमाग़ी तनाव है, स्त्री को अपनी जरख़रीद जायदाद बनाने और मनमर्ज़ी के मुताबिक़ इस्तेमाल करने का लालच है, कुछ लाभ देने के बदले बहुत कुछ पाने की इच्छा है, स्त्री की काबिलियत को नकारने का सदियों पुराना गुरूर है, उसे महज़ एक देह तक समेट देने वाला चरित्र है... वाक़ई फेहरिस्त लम्बी है. सबको यहाँ समेट पाना या अल्फाज़ में पिरो पाना मुश्किल है.
ये भी पढ़ें: #MeToo: औरतों के इस युद्धघोष से क्या मिला
इमेज कॉपीरइटAF
लेकिन इन सबका ज़िम्मेदार कौन है?
सवाल है कि यह सब इन लड़कियों/स्त्रियों के साथ कर कौन रहा था/है?
मर्द... सही जवाब तो यही होना चाहिए.
हाँ. ये सब करने वाले मर्द ही हैं.
साथ ही साथ ये भी सही है कि सभी मर्द ऐसे नहीं थे/ हैं.
हाँ, श्रेष्ठता की ताक़त से लबरेज़ ज़हरीली/ धौंसपूर्ण मर्दानगी वाले मर्द ऐसे थे/ हैं.
सवाल है कि ये मर्द या वे मर्द... क्या हम सभी मर्दों ने 'मी टू' से निकली आवाज़ पर ग़ौर किया या हँसी-मजाक में उड़ा दिया और अनसुनी करके आगे बढ़ गए?
ये भी पढ़ें: #MeToo: हिंदी मीडिया में महिला का यौन उत्पीड़न नहीं होता?
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesमामूली नहीं... जहन्नम की आग जैसी
ऐसा नहीं था कि 'मी टू' से पहले स्त्रियों के साथ होने वाले धौंस वाले मर्दाना बर्ताव के बारे में पता नहीं था. (यह धौंस वाला मर्दाना ज़िंदगी के हर क्षेत्र में देखा जा सकता है) मगर इसके साथ ख़ामोशी का एक लबादा था.
बहुत सी औरतें चाहकर भी बोलने की हिम्मत नहीं कर पाती थीं.
बहुतों ने मान लिया कि उनकी ज़िंदगी का यह सच है और इसी सच के साथ ज़िंदगी गुजारनी है. दफ़्तरों और विश्वविद्यालयों या ऐसी ही किसी जगह में कभी-कभार इक्का-दुक्का आवाज़ उठी तो उन आवाज़ को भी दबाने की हर मुमकिन कोशिश की गई.
कई बार ऐसा भी लगा कि यह तो निहायत ही मामूली सी बात है. इस पर शिकायत क्यों? मगर वह निहायत ही मामूली सी बात मर्दों के लिए थी/ है. वह उन लड़कियों और स्त्रियों के लिए कभी मामूली नहीं थी/ है, जिन्होंने उन मर्दाना रवैये को झेला.
वे मामूली सी बातें तो उनके लिए जहन्नम की आग से गुजरने जैसा था/ है. वे जहन्नमी रवैये को अब और ख़ामोशी से बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं. हम यह नहीं कह सकते कि वे अब क्यों बोल रही हैं. वे सही नहीं बोल रही हैं. वे बोल रही हैं, हमें उन्हें गौर से सुनना होगा. संवाद बनाना होगा. समझना होगा.
ये भी पढ़ें: औरतें यौन शोषण पर इतना बोलने क्यों लगी हैं
क्या कोई मर्द कह सकता है'मैं नहीं'?
सवाल यह भी है कि क्या कोई भी मर्द अपने दिल पर हाथ रख कर दावे के साथ शपथ लेकर यह कह पाने की हालत में है कि आज तक उसने ऐसी कोई धौंस वाली मर्दाना हरकत नहीं की जिसकी वजह से किसी स्त्री का दिल न दुखा हो? (इस दुख में हर तरह का हिंसक बर्ताव शामिल है. चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक या फिर यौन हिंसा या उत्पीड़न) यह बात जितनी काम की जगह, स्कूल, कॉलेज, संगठनों, पार्टियों के बारे में है, उतनी ही घर के अंदर के बारे में भी है.
इसलिए 'मी टू' सिर्फ़ स्त्री आवाज़ तक नहीं सिमटनी चाहिए और सिर्फ़ शहरी आवाज़ बनकर भी नहीं रहनी चाहिए. इसका बड़ा मक़सद तो यह होना चाहिए कि हर मर्द अपने महिलाओं के बारे में अपने नज़रिए और बर्ताव की जांच-पड़ताल करें. बल्कि यह कहना चाहिए कि इस मुहिम ने मर्दों को अपने बर्ताव को इंसानी बनाने का एक बड़ा मौका मुहैया कराया है.
इसीलिए मर्दों को 'मी टू' के आईने में अपनी शक्ल ज़रूर देखनी चाहिए. इसके बरअक्स अपने रवैये/बर्ताव/नज़रिए के बारे में विचार करना चाहिए. विचार को कथनी और करनी में बदलने की कोशिश करनी चाहिए.
ये भी पढ़ें: 'मैंने कुंवारी मां बनने का फ़ैसला क्यों किया?'
क्या मर्दों ने डर और घुटन महसूस की?
अब ज़रा एक और बात पर ग़ौर करें. जब 'मी टू' के तहत एक के बाद एक महिलाएँ तक़लीफ़देह आपबीती के साथ सामने आ रही थीं तो हम मर्द कैसा महसूस कर रहे थे. क्या हममें से कइयों को यह डर लगा था कि कहीं मेरा नाम तो किसी ने नहीं ले लिया?
ऐसा नहीं है कि हममें से जिन लोगों को यह डर सता रहा था, उन्होंने कुछ किया ही था. क़तई नहीं. यह उस माहौल में पैदा हुई दिमाग़ी हालत थी. और जो भी संवेदनशील इंसान होगा, वह इस हालत में आसानी पहुंच सकता है.
अब कल्पना करें... अगर एक लड़की या स्त्री 24 घंटे अपने बर्ताव/रवैये/ काम के बारे में ऐसे ही दिमाग़ी हालत से गुजरती हो तो उस पर क्या बीतती होगी?
हमारे मुल्क की ज़्यादातर स्त्रियां ऐसे ही निगरानी और डर के साथ पूरी ज़िंदगी गुजार देती हैं कि कहीं कोई कुछ कह देगा तो... कहीं कुछ हो गया तो? कहीं किसी ने कुछ कर दिया तो? इस डर में घुटन भी है.
क्या हम मर्दों ने 'मी टू' के दौर में इस 'कोई कुछ कह न दे' की दिमागी हालत को महसूस किया और समझा?
ये भी पढ़ें: 'स्त्री ज़बरदस्ती नहीं करती, ज़बरदस्ती मर्द करते हैं'
तो मर्द अब क्या कर सकते हैं?
मर्द बहुत कुछ कर सकते हैं. उन्हें करना भी चाहिए. यह उनकी नैतिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी है. कुछ ऐसा जो स्त्रियों को यक़ीन दिला सके कि हम मर्द अपने ग़लत बर्ताव/ रवैये के बारे में गहराई से सोचने को तैयार हैं. हम अपने बर्ताव के लिए शर्मिंदा हैं.
तो क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम मर्दों को अपनी ज़िंदगी में आई सभी स्त्रियों से कम से कम माफ़ी माँगनी चाहिए?
ज़रूरी है कि माफ़ी रस्म अदायेगी भर होकर न रह जाए. यह पूरी गंभीरता और पूरी ज़िम्मेदारी के साथ हो ताकि महिला साथी/साथियों को इसका साफ़ पता चले और वे इसे बेख़ौफ़ होकर बिना किसी दबाव के मान सकें.
मगर यहां ऐसा कतई नहीं है. इस क्षमा/माफ़ी का मतलब अपराध की दण्ड प्रक्रिया से बचना/बचाना नहीं है. इस माफ़ी का मतलब, अपने मन को टटोलना है और अपने को बदलाव के लिए तैयार करना है. यह एक सामाजिक और राजनीतिक वचन होगा. इससे डिगने वाले को यह वचन दिखाया जा सकेगा.
यही नहीं, इस माफ़ी के बाद एक नई शुरुआत का वादा भी होना चाहिए. नई शुरुआत यानी हर जगह हिंसक रवैये से परे, भेदभाव से दूर, बराबरी वाले नये तरह के सम्मानजनक रिश्ते की शुरुआत.
ये भी पढ़ें: बलात्कार की वो संस्कृति, जिसे आप सींच रहे हैं
तो क्या हम माफ़ी माँगने को तैयार हैं? जी, मैं तैयार हूँ...
मैं शपथ लेता हूँ कि आज के बाद घर के अंदर और बाहर किसी भी लड़की/ स्त्री को ऐसा कुछ नहीं कहूँगा और करूँगा,
- जो उसके सम्मान को ठेस पहुँचाती हो.
- जो उसमें हीन भावना पैदा करती हो.
- जो उसके मन/ ख़्वाहिश/ इच्छा के ख़िलाफ़ हो.
- जो उसे अपने मनमर्ज़ी का कुछ करने से रोकती हो.
- जो उसे अपने मन मर्जी से सोचने में बाधा पहुँचाती हो.
- जो उसे कुछ भी मजबूरी/ दबाव में करने पर मजबूर करती हो.
- जो उसे किसी भी तरह से डराती हो.
(नासिरूद्दीन वरिष्ठ पत्रकार हैं. सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय रहते हैं. लेखन और शोध के अलावा सामाजिक बदलाव के कामों से जमीनी तौर पर जुड़े हैं)
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं. इसमें शामिल तथ्य और विचार बीबीसी के नहीं हैं और बीबीसी इसकी कोई ज़िम्मेदारी या जवाबदेही नहीं लेती है)
अस्वीकरण:
इस लेख में विचार केवल लेखक के व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस मंच के लिए निवेश सलाह का गठन नहीं करते हैं। यह प्लेटफ़ॉर्म लेख जानकारी की सटीकता, पूर्णता और समयबद्धता की गारंटी नहीं देता है, न ही यह लेख जानकारी के उपयोग या निर्भरता के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए उत्तरदायी है।
Tickmill
IC Markets Global
GO MARKETS
IQ Option
STARTRADER
FOREX.com
Tickmill
IC Markets Global
GO MARKETS
IQ Option
STARTRADER
FOREX.com
Tickmill
IC Markets Global
GO MARKETS
IQ Option
STARTRADER
FOREX.com
Tickmill
IC Markets Global
GO MARKETS
IQ Option
STARTRADER
FOREX.com